माँ नंदा देवी के चौसिंगा खाडू के बारे में जानें, और देखिए क्या है मान्यता

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मां नंदा को उनकी ससुराल भेजने की यात्रा है राजजात। मां नंदा को भगवान शिव की पत्नी माना जाता है और कैलास (हिमालय) भगवान शिव का निवास।

मान्यता है कि एक बार नंदा अपने मायके आई थीं। लेकिन किन्हीं कारणों से वह 12 वर्ष तक ससुराल नहीं जा सकीं। बाद में उन्हें आदर-सत्कार के साथ ससुराल भेजा गया।

चमोली जिले में पट्टी चांदपुर और श्रीगुरु क्षेत्र को मां नंदा का मायका और बधाण क्षेत्र (नंदाक क्षेत्र) को उनकी ससुराल माना जाता है।

एशिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा और गढ़वाल-कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत श्रीनंदा राजजात अपने में कई रहस्य और रोमांच को संजोए है।
7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने राजधानी चांदपुर गढ़ी से देवी श्रीनंदा को 12वें वर्ष में मायके से कैलास भेजने की परंपरा शुरू की।

राजा कनकपाल ने इस यात्रा को भव्य रूप दिया। इस परंपरा का निर्वहन 12 वर्ष या उससे अधिक समय के अंतराल में गढ़वाल राजा के प्रतिनिधि कांसुवा गांव के राज कुंवर, नौटी गांव के राजगुरु नौटियाल ब्राह्मण सहित 12 थोकी ब्राह्मण और चौदह सयानों के सहयोग से होता है।

चौसिंगा खाडू
चौसिंगा खाडू (काले रंग का भेड़) श्रीनंदा राजजात की अगुवाई करता है। मनौती के बाद पैदा हुए चौसिंगा खाडू को ही यात्रा में शामिल किया जाता है।

राजजात के शुभारंभ पर नौटी में विशेष पूजा-अर्चना के साथ इस खाडू के पीठ पर फंची (पोटली) बांधी जाती है, जिसमें मां नंदा की श्रृंगार सामग्री सहित देवी भक्तों की भेंट होती है। खाडू पूरी यात्रा की अगुवाई करता है।

होमकुंड में इस खाडू को पोटली के साथ हिमालय के लिए विदा किया जाता है।

माँ नंन्दा देवी को चढाए जाने वाले एक खास खाडू के बारे में बता रहे है,माँ नंन्दा देवी की राज जात यात्रा हर 12 साल में एक बार होती है, मां नंन्दा देवी का मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में हैं । जो खाडू नंन्दा देवी को चढ़ाया जाता हैं, खाडू पैदा होते ही 4 सींग निकले रहते हैं, जिसको पहाड़ी भाषा में चौसिंगा खाडू बोलते हैं,ये खाडू हर 12 साल में एक बार पैदा होता हैं, खाडू की बली नहीं देते हैं मान्यता हैं कि जब पूरी राज जात यात्रा संपूर्ण हो जाती हैं तो उस खाडू को नंन्दा देवी के कैलाश पर्वत की ओर छोड़ दिया जाता हैं । और वो खाडू खुद बा खुद कैलाश पर्वत की ओर जाता हैं । और कुछ दूर तक दिखाई देने के बाद उसका पता नहीं चलता की वह कहा गया । कई लोगों ने देखने की कोशिश की , कि खाडू कहां तक जाता हैं पर किसी को पता नी चला आज तक।

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