नरेंद्र पिमोल
उत्तराखण्ड के पहाड़ों में आजकल वसंत के आगमन का प्रतीक प्योली फूल वातावरण में चार चांद लगा रहे हैं. जंगली प्रजाति के यह फूल जब खिलते हैं तो पूरे वातावरण में वसंत के आगमन का आभास हो जाता है. इस फूल को लेकर एक अलग कहानी भी है.
कुमाऊं व गढ़वाल की हरी-भरी पहाड़ की वादियां अपनी सुंदरता और लोक संस्कृति के लिए जानी जाती हैं. शरद ऋतु के बाद कुमाऊं के पहाड़ के बगीचे और खेत-खलिहान रंग-बिरंगे फूलों के साथ-साथ फलों से भी लहलहा रहे हैं. वहीं पहाड़ों में इन दिनों वसंत के आगमन का प्रतीक प्योली फूल जंगलों के वातावरण में चार चांद लगा रहे हैं. जंगली प्रजाति के यह फूल जब खिलते हैं तो पूरे वातावरण में वसंत के आगमन का आभास हो जाता है.
उत्तराखण्ड में आज भी पूजा में इस्तेमाल नहीं होती प्योली: पुराने बुजुर्गों का मानना है, प्योली फूल वसंत के आगमन का प्रतीक है. पीले फूल के खिलने से जहां पहाड़ की सुंदरता में चार चांद लगते हैं तो वहीं खास बात यह है कि प्योली फूलदेई त्योहार में प्रयोग आने वाले फूल भी हैं. इसे छोटे-छोटे बच्चे फूलदेई पर्व के मौके पर लोगों के देहली पर चढ़ाते हैं. ज्योतिष के अनुसार प्योली फूल को पूजा भगवान को अर्पित करने योग्य नहीं माना जाता है, क्योंकि इस फूल की ताजगी की अवधि कुछ समय के लिए होती है. ऐसे में इसको पूजा में वर्जित माना जाता है.
फूलदेई पर्व विषेस
देवभूमि उत्तराखंड की लोक संस्कृति धर्म और प्रकृति का अद्भुत स्वरूप है जहाँ वर्ष के सभी महीनों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है उन्हीं त्यौहारों में से एक विशेष त्यौहार है “फूलदेई” जिसे उत्तराखंड के सम्पूर्ण पर्वतांचल में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। प्रकृति को आभार प्रकट करने वाला लोकपर्व है ‘फूलदेई’
चैत्र माह की संक्रांति को, जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है, सर्दियों के मुश्किल दिन बीत जाते हैं, उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। सर्दी और गर्मी के बीच का खूबसूरत मौसम, फ्यूंली, बुरांश और बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूल और बच्चों के खिले हुए चेहरे… ‘फूलदेई’ के पर्व की विशेषता है। नए साल का, नई ऋतुओं का, नए फूलों के आने का संदेश लाने वाला ये त्योहार आज उत्तराखंड के गांवों और कस्बों में मनाया जाता है।
गढ़वाली कुमाउनी वार्ता
समूह संपादक