चीड़ के पेड़ से लीसा निकालना हुवा आसान,वीडियो देख के आप भी हैरान हो जायँगे

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उत्तराखंड के जंगलों में चीड़ के पेड़ों से लीसा निकालना हुआ आसान, बिना चीड़ के पेड़ों को नुकसान पहुंचाए बोर होल पद्धति से आसानी से निकाला जा सकता है चीड़ के पेड़ों से लीसा,

वन प्रभागीय अधिकारी नरेंद्र नगर राम सिंह मीणा द्वारा वन विभाग के कर्मचारी और गांव के लोगों को दिया जा रहा है प्रशिक्षण, बोरहोल पद्धति से लीजा निकालने के बाद चीड़ के पेड़ों को किसी भी तरह का नहीं होता है नुकसान ,चीड़ के पेड़ों से निकले हुए लिसा से सरकार को हर महीने होता है करोड़ों रुपए का राजस्व की प्राप्ति।

उत्तराखंड सरकार को हर साल चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले लीसा से करोड़ रुपए की राजस्व की प्राप्ति होती है। लेकिन प्रशिक्षित ना होने के कारण वन विभाग के कर्मचारियों व गांव के ग्रामीणों के द्वारा लिसा निकालने के तहत चीड़ के पेड़ों को लगातार नुकसान पहुंचाया जा रहा था। चीड़ के पेड़ों को नुकसान से बचाने के लिए नरेंद्र नगर वनप्रभागीय अधिकारी धर्म सिंह मीणा द्वारा वन विभाग के कर्मचारियों को और गांव के ग्रामीणों को बोर होल पद्धति से चीड़ के पेड़ों से लिसा निकालने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस पद्धति से एक तरफ तो भारी मात्रा में लीसा की प्राप्ति होती है। वही चीड़ के पेड़ों को काफी कम मात्रा में नुकसान पहुंचता है और वृक्षों को भारी मात्रा में नष्ट होने से बचाया भी जा रहा है ।वन प्रभागीय अधिकारी धर्म सिंह मीणा के अनुसार पहले वन विभाग के कर्मचारी और ग्रामीण लीसा निकालने के लिए पेड़ों को जगह-जगह से छीलने के बाद उसमें से लीसा निकालते थे जिससे काफी मात्रा में पेड़ों को हानि पहुंचती थी। लेकिन अब बोर होल पद्धति से एक छोटा सा छेद करने के बाद उसमें प्लास्टिक के बैग को लगाने के बाद आसानी से चीड़ के पेड़ों को बिना क्षति पहुंचाए लीसा निकाला जा सकता है। लीसा निकालने के बाद दो-तीन दिन में ही पेड़ों में किए गए होल बंद हो जाते हैं। जिससे पेड़ों को कोई भी छती नहीं पहुंचती है ।वन प्रभागीय अधिकारी द्वारा गांव गांव जाकर गांव के ग्रामीणों को इस पद्धति के बारे में जानकारी दी जा रही है और प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ताकि चीड़ के पेड़ों को बचाया जा सके। हर साल चीड़ के पेड़ों से निकले हुए लिसा से सरकार को सैकड़ों करोड़ रुपए के राजस्व की प्राप्ति होती है। लेकिन चीड़ के पेड़ों को काफी नुकसान भी पहुंचा था ।लेकिन अब इस पद्धति के चलते चीड़ के पेड़ों को भी बचाया जा सकेगा और भारी मात्रा में लीसा की प्राप्ति भी की जा सकता है

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