अद्भुत“बधाणगढ़ी मंदिर”सरकारों की अनदेखी के चलते आज पर्यटक की दृष्टि से पहचान खोता हुआ नजर आ रहा है…

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नरेंद्र पिमोली

किसी जमाने में राजाओं का गढ़ कहलाने वाला ‘बधाण’ या अद्भुत मंदिर सरकारों की अनदेखी के चलते आज पर्यटक की दृष्टि से पहचान खोता हुआ नजर आ रहा है, भले ही सरकार ने देवभूमि के मंदिरों का जीर्णोद्धार के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए हो लेकिन आज तक सरकारों ने इस अद्भुत मंदिर की अनदेखी की है जिसे आज मंदिर पर्यटक की दृष्टि से अपनी पहचान खोते हुवे होते नजर आ रहे हैं पर्यटक नगरी ग्वालदम से महज 5 से 7 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पार कर इस मंदिर में श्रद्धालु पहुंचते हैं और यहां पर हिमालय ऐसे दिखते हैं जैसे मानो माँ के स्वागत के लिए सदैव समर्पित रहते हैं

बधाणगढ़ी मंदिर, उत्तराखंड के चमोली और बागेश्वर जिले के नजदीक ग्वालदम में स्थित है और ये मंदिर एक ताल के पास में स्थित है यह मंदिर बिनातोली से ऊपर एक पहाड़ी मैं स्थित है इसलिए यही कारण है कि इस मंदिर को “बधाणगढ़ी मंदिर” कहा जाता है यह मंदिर देवी माँ को समर्पित है ,  “बधाणगढ़ी मंदिर और अग्यारी महादेव कत्युरी वंश के शासन के दौरान बनाया गया था जिनका 8वी और 12वी शताब्दी तक इस क्षेत्र पर शासन था, यह मंदिर इस क्षेत्र का लोकप्रिय मंदिर भी है, बधाणगढ़ी मंदिर समुन्द्र स्तर से ऊपर 2260 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है | इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहाँ मांगी जाने वाले हर मनोकामना जरुर पूरी होती है | बधाणगढ़ी मंदिर से उत्तराखंड में कुछ प्रमुख चोटियों जैसे नंददेवी, त्रिशूल, पंचचुली जैसे कुछ लोगों के नाम पर भी एक मनोरम दृश्य प्राप्त हो सकता है । इस स्थान से ट्रैकिंग का आनंद भी लिया जा सकता है क्योंकि इस ताल से ट्रैक करना बहुत ही आसान होता है |
बधाणगढ़ी मंदिर के अलावा आप चमोली जिले के अन्य क्षेत्रो में अंगियारी महादेव, नंद केसरी, कोटमाई, तुंगनाथ मंदिर , अनुसूया देवी मंदिर , रुद्रनाथ मंदिर, लाटू देवता मंदिर, कल्पेश्वर मंदिर , ज्वाल्पा देवी मंदिर आदि मंदिरों के भी दर्शन कर सकते है |

मां नंदा देवी मेला भाद्र माह की शुक्ल षष्ठी से प्रारंभ होता है। इसी दिन मा नंदा की पूजा की जाती है। देवी का अवतार जिस पर होता है उसे देवी का डंगरिया कहा जाता है। मा नंदा की पूजा के लिए केले के वृक्षों से मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। केले के वृक्षों के चयन के लिए डंगरिया हाथ में चावल और पुष्प लेकर उसे केले के वृक्षों की ओर फेंकते हैं। जो वृक्ष हिलता है उसकी पूजा कर उसे माँ के मंदिर में लाया जाता है

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