पर्वतीय क्षेत्रों में करीब 600 काश्तकार मछली पालन से अच्छी आजीविका अर्जित कर रहे है,…

Spread the love

जिला प्रशासन तथा मत्स्य विभाग के द्वारा स्थानीय लोगों को जीविका के क्षेत्र में अधिक अवसर उपलब्ध कराने हेतु किये गये विशेष प्रयासों के कारण आज पहाड में भी मत्स्य पालन धीरे धीरे मजबूत आजीविका का साधन बनने लगा है। जनपद चमोली के पर्वतीय क्षेत्रों में इस समय करीब 600 काश्तकार मछली पालन से अच्छी आजीविका अर्जित कर रहे है। यहां की मछलियों की उपयोगिता के कारण आज न केवल राज्य अपितु बाहरी प्रदेशों से भी यहां की मछलियों की डिमांड काश्तकारों को मिलने लगी है। इसको लेकर भी अब काश्तकारों में मछली पालन के लिए खासा उत्साह दिखने लगा है। उत्तराखंड सरकार ने भी ‘एक जनपद एक उत्पाद योजना’ के अन्तर्गत जनपद चमोली को मछली उत्पादन हेतु चयनित किया है।

वर्ष 2017 में 200 काश्तकार मछली पालन से जुड़े थे जबकि वर्तमान में 600 से अधिक लोग काॅर्प एवं ट्राउट मछली का पालन कर स्वरोजगार कर रहे है। वर्ष 2017 से 2021 की तुलना में आज मत्स्य बिक्री से आय 60 लाख से बढकर 1.50 करोड़ प्रतिवर्ष तक पहुंच चुकी है। सहायक निदेशक बताते है कि जनपद में शीतजलमत्सिकी के दृष्टिकोण से अनुकूल वातावरण मौजूद है और इससे किसानों को अच्छा फायदा मिल रहा है। बैरांगना एवं तलवाडी हैचरी से सभी पहाड़ी जनपदों को ट्राउट मछली का बीज आपूर्ति किया जाता है। जहां से 7-8 लाख मत्स्य बीज का प्रतिवर्ष उत्पादन एवं विपणन किया जा रहा है। इससे करीब 70 से 80 लाख प्रतिवर्ष का राजस्व भी प्राप्त हो रहा है।

सहायक निदेशक ने बताया कि जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया के प्रयासों से जनपद के मत्स्य पालकों को मछली बिक्री के लिए फिश आउटलेट वैन एवं फिश कैफे भी उपलब्ध कराया गया है। इसके अलावा मत्स्य पालन के लिए काश्तकारों को निरतंर प्रोत्साहित किया गया है। फलस्वरूप आज बडी संख्या में काश्तकार मछलियों का उत्पादन कर जिले के बाहर भी मछलियों की आपूर्ति कर रहे है। किसानों द्वारा जिले से बाहर उतराफिश नाम से मछलियों का विक्रय किया जा रहा है। जबकि राज्य से बाहर दिल्ली में फ्रेश एंड फ्रोजन तथा मुंबई में स्वीट स्टफ जैसे नामी एजेंसियों के माध्यम से यहां की मछली बेची जा रही है। बडे शहरों के व्यापारी स्वयं किसानों से मछली क्रय कर रहे है। जिससे किसानों को अपने घर-तालाब पर ही मछली के अच्छे दाम मिल रहे है।

मनु मत्स्यजीवी सहकारिता समिति वाण के अध्यक्ष पान सिंह तथा हिमालय मत्स्यजीवी सहकारिता समिति सुतोल के अध्यक्ष हुकुम सिंह बताते है कि जिला प्रशासन एवं मत्स्य विभाग के सहयोग से कार्प एवं ट्राउट मछली के उत्पादन से जुड़कर समिति एवं काश्तकारों को अच्छा लाभ हो रहा है और धीरे धीरे यहां के काश्तकार शीलजल मंछली पालन एवं इसकी उपयोगिता से परिचित होने लगे है। निश्चित रूप से मछली पालन पहाडी क्षेत्रों के किसानों के लिए एक वरदान साबित होने लगा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Powered & Designed By Dhiraj Pundir 7351714678